Journal of Ban Asbestos Network of India (BANI). Asbestos Free India campaign of BANI is inspired by trade union movement and right to health campaign. BANI has been working since 2000. It works with peoples movements, doctors, researchers and activists besides trade unions, human rights, environmental, consumer and public health groups. BANI demands criminal liability for companies and medico-legal remedy for victims.
Sunday, October 19, 2008
देश भर में एस्बेस्टस फैला रहा है लंग कैंसर
नवभारत टाइम्स
रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड ही नहीं, हमारे फौजी जिन घरों में रहते हैं, उनकी छत भी एस्बेस्टस की बनी हुई है। कई रिसर्च और सरकारी अध्ययनों से साबित हुआ है कि एस्बेस्टस से लंग कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। एस्बेस्टस का एक भी फाइबर अगर फेफड़ों तक पहुंच जाए, तो इससे हुए नुकसान की भरपाई नहीं हो सकती। यही वजह है कि दुनिया भर के करीब 40 देशों सहित वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गनाइजेशन ने यह मान लिया है कि एस्बेस्टस का सुरक्षित और नियंत्रित इस्तेमाल मुमकिन नहीं है। अमेरिकन और यूरोपियन स्टडी के अनुसार हर रोज एस्बेस्टस से होने वाली बीमारी के कारण 30 लोगों की मौत हो रही है। इससे बचाव का एकमात्र उपाय इस पर बैन ही है। एक तरफ पूरी दुनिया एस्बेस्टस के गंभीर खतरों से परेशान हैं, दूसरी तरफ भारत में इसका जमकर इस्तेमाल हो रहा है।
एस्बेस्टस से होने वाले कैंसर का खतरा हम सभी पर मंडरा रहा है। वॉटर सप्लाई, सीवेज, ड्रेनेज के लिए इस्तेमाल होने वाले पाइप, पैकेजिंग मटीरियल, गाड़ियों के ब्रेक क्लच, ब्रेक शू सहित हजारों चीजों में एस्बेस्टस का इस्तेमाल हो रहा है। इन्वायरन्मंट और हेल्थ एक्सपर्ट गोपाल कृष्ण का कहना है कि फिलहाल भारत में सभी प्रकार के एस्बेस्टस (ब्लू, ब्राउन, वाइट) की माइनिंग पर बैन है। एस्बेस्टस वेस्ट का व्यापार भी बैन है। हालांकि, वाइट एस्बेस्टस के खनन पर तो पाबंदी है लेकिन इसके आयात और इस्तेमाल पर कोई बैन नहीं है। घरों ही नहीं, सरकारी इमारतों और स्कूलों में भी एस्बेस्टस का इस्तेमाल हो रहा है।
ऐसा नहीं है कि हमारे नेता और सरकारी अधिकारियों को इसके खतरे के बारे में पता नहीं है। 18 अगस्त 2003 को तत्कालीन स्वास्थ्य और संसदीय कार्यमंत्री सुषमा स्वराज ने संसद को बताया कि अहमदाबाद स्थित नैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ ऑक्युपेशनल हेल्थ की स्टडी से यह साफ है कि किसी भी प्रकार के एस्बेस्टस के लंबे समय तक संपर्क में रहने से एस्बेस्टोसिस, लंग कैंसर और मीसोथीलियोमा का खतरा हो सकता है। 1994 में उद्योग मंत्रालय के एक ऑफिस मैमोरेंडम में कहा गया था कि एस्बेस्टस के संपर्क में आने से होने वाली बीमारियों को देखते हुए डिपार्टमंट ऐसी किसी भी नई यूनिट को इंडस्ट्रियल लाइसेंस नहीं देगा, जो एस्बेस्टस क्रिएट करेगा।
गोपाल कृष्ण कहते हैं कि भारत में ज्यादातर एस्बेस्टस का रूस और कनाडा से आयात होता है। कनाडा में खुद 'नो होम यूज पॉलिसी' के तहत एस्बेस्टस पर पाबंदी है। भारत में पिछले 4 सालों में एस्बेस्टस का इस्तेमाल 3 गुना बढ़ा है। उनके मुताबिक, जो मजदूर एस्बेस्टस से संबंधित काम करते हैं, वे तो खतरे में हैं ही, उनके अलावा उनके परिवार के लोग भी खतरे में हैं क्योंकि उनके कपड़ों में चिपक कर एस्बेस्टस उनके घरों तक पहुंचता है। मशहूर लंग स्पेशलिस्ट डॉ. एस. आर. कामथ कहते हैं कि देश भर में हुए 5 सर्वे से पता चला है कि एस्बेस्टस की वजह से सबसे ज्यादा फेफड़े की बीमारियां होती हैं। ऐसे लोगों में सांस लेने में तकलीफ, कफ, थूक के साथ खून निकलना और छाती में दर्द की शिकायत होती है। कई बार यह परमानेंट डिसएबिलिटी की वजह भी बन जाती है।
पूनम पाण्डे
19 Oct 2008
http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/3616279.cms
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